शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

“कभी-कभी ऐसा होता है”






जीवन की  भागदौड़ और अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति में हम कितने अच्छे रचनाकारों को पढ़ नहीं पाते
… आखिर होते तो कुल २४ घंटे ही हैं. उसमें कितना कुछ !
ऐसे में कोई नया शब्दशिल्पी मिलता है - तो अच्छा लगता है  …







तीन महीने बाद, आज नैना को वो लम्हा मिला था, जो एक जगह कहीं ठहर जाने जैसा था। कॉफ़ी शॉप में कप थामे, उसकी नज़र शीशे के बाहर भींगी शाम के अँधेरे में खुद को उतारना चाहती, तो आसमान में टंगे यादों के काले बादल, उसे रोक लेते। बाहर गिरती बारिश की बूंदों के शोर से नैना का एक ऐसा दर्द जुडा था, जो उसके दिल की सारी मस्तियाँ, सारी जिंदादिली छीन चुकी थी। बच गई थी, तो उसके अंदर सिर्फ एक चुभती हुई ख़ामोशी, एक दर्द। जिससे दूर जाने के लिए, उसने शहर बदला, नौकरी बदली। पर दूर तो दूसरों से जाया जाता है, अपने दिल से, खुद से, नहीं। अर्णव और उसकी यादें भी तो कोई दूसरी नहीं थी |
बारिश की इस शाम ने नैना के उन ज़ख्मों को कुरेद दिया। जिसको दिल्ली आने के बाद वो अपने मसरूफ़ियत से भरने की कोशिश कर रही थी। टेबल पर रखी उसके फोन में घंटी बजी, उठाया तो
“कहाँ हो नैना? पार्टी शुरू होने वाली है”
“सॉरी अंजलि, मैं नहीं आ पाऊँगी, ऑफिस के बाद बारिश में फँस गई हूँ“
“पर इधर तो नहीं हो रही”
“बारिश तो हर वक़्त कहीं न कहीं होती ही है, पर भींगता कोई-कोई।“
नैना ने अपने ज़ज्बात को उन लम्हों से जोड़ा तो अंजलि ने सवाल की,
“मैं समझी नहीं, क्या बोल रही है तू”
“वेल लीव दिस, इधर तो बहुत हो रही है, तुम सब एन्जॉय करो, वन्स अगेन हैप्पी बर्थडे टू यू डिअर”।
सच कहा था नैना ने भींगता कोई-कोई ही है। यहाँ बैठे-बैठे, वो भी तो भींग ही रही थी अर्णव की यादों में, और बाहर बारिश रुक सी गई थी।
कानपूर में वो बरसात का ही दिन था। जब नैना कॉलेज से अपनी ऍमबीऐ की डिग्री लेकर, रोहन के बाइक पर सवार होकर भींगते हुए अर्णव के पास पहुँची थी। जिसे अर्णव ने न जाने किन बातों से जोड़ दिया। “तुम, रोहन के साथ, वो भी इस हालत में आई हो, क्या है ये? कब से चल रहा है ये सब?” अर्णव इतने पर कहाँ रुका था। उसने तो रोहन को भी क्या-क्या कह दिया, उनदोनो की दोस्ती के रिश्ते को गालियाँ तक दे दी “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरी गर्ल फ्रेंड को अपने बाइक पर बैठाने की”। अर्णव के इस तमाशे ने वहाँ कितने चेहरे को खड़े कर दिए थे, जैसे किसी फिल्म की शूटिंग चल रही हो। नैना को ये देख जब रहा नहीं गया तो वो बोली “अर्णव क्या हो गया तुम्हें” । अर्णव चिल्लाते हुए कहा “तुम चुप रहो, मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ”। फिर वो बाद कहाँ, नैना उसी वक़्त वहाँ से चली आई।
यह अच्छी बात है कि सामने वाला possessive हो पर इतना न हो कि possessiveness शक का रूप इख्तियार कर ले। रिश्तों को खाक कर देता है ये शक। उस दिन के बाद, फिर न कभी नैना ने उससे संपर्क किया और न ही अर्णव ने।
आज तीन महीने के बाद दोपहर में ऑफिस के टेलीफ़ोन पर अर्णव का कॉल आया था, “नैना, आई ऍम सो सॉरी, न जाने उस दिन मुझे क्या हो गया था। रोहन के साथ तुमको देखने के बाद। सो प्लीज फोर्गिव मी, मैं आज शाम के फ्लाइट से दिल्ली आ रहा हूँ। मुझे वहाँ जॉब मिल गई है। प्लीज एअरपोर्ट आ जाना नौ बजे”। नैना ने बिना जवाब दिए रिसीवर रख दिया ।
उसके लिए, जितना अर्णव का कॉल आना सवाल नहीं बना, उतना ये “आखिर अर्णव को, यहाँ का नंबर कहाँ से मिला”। दिमाग पर जोर दिया तो याद आया, करीब सप्ताह भर पहले फेसबुक पर उसका रिक्वेस्ट आया था। जिसे उसने अब तक पेंडिंग छोड़ रखा है। शायद वहीँ से मिला होगा।
घड़ी को देखा तो सात बज रहे थे। वक़्त तो दौड़ रहा था मगर बारिश ने दिल्ली को रोक दिया था। ठहर गई थी दिल्ली पर जो कुछ नहीं ठहर था, तो वो थी, हर बीतते लम्हों के साथ नैना के दिल की बैचैनी। फोन उठा कर एक नंबर मिलाया “हेल्लो इजी कैब”
“यस, हाउ मे आई असिस्ट यू मेम”
“आई ऍम नैना अग्रवाल ...,”
नैना ने पिक्कअप और ड्राप पॉइंट नोट करवाया तो अगले पन्द्रह मिनटों में कैब कॉफ़ी शॉप के बाहर आ कर खड़ी हो गई। नैना के बैठते ही कैब सड़क पर जमे पानी को तेज़ रफ़्तार के साथ हवा में उछालते दौड़ने लगी। वो अपने प्यार को एक ऐसा ही रफ़्तार देने को निकली है, जो तीन महीने से कहीं ठहर गया था। ठहरे पानी में तो काई भी लग जाती है, और वो अपने प्यार को शक की आग में खाक होते नहीं देखना चाहती।
सीपी से एअरपोर्ट के इस सफ़र में वो बहुत खुश थी। तेज़ रफ़्तार से दौड़ती कैब के विंडो से हाँथ बाहर निकालती और बारिश बुँदे हंथेलियों पर जमा कर अंदर कर लेती। ये बुँदे उसकी तीन महीने से जाया होने वाले वे आँसू थे। जिसे समेटने का उसे आज मौका मिल रहा था।
एअरपोर्ट पर कैब से उतर कर, वो एरावल के गेट नंबर तीन पर एक फूलों का गुलदस्ता ले कर और खड़ी हो गई, अर्णव के इंतजार में। गेट से एग्जिट करते हुए नैना ने अर्णव को देख लिया था, मगर लोगों की भीड़ में अर्णव नैना को नहीं देख पाया। नैना ने उसे आवाज़ लगाया “अर्णव, दिस साइड”।
नैना को तलाशती अर्णव की नज़रें जब एक जगह ठहरी तो उसे मुस्कुराती हुई नैना दिखी, जिसका उसने कभी दिल दुखाया था। उसकी नज़रे शर्म से झुकी तो नहीं पर नैना की प्यार से भरे जरुर दिखे। नैना के सामने पहुँच कर जब उसने अपना सनग्लास उतारा तो लगा अब छलक जायेंगे।
नैना ने फूलों का गुलदस्ता अर्णव देते हुए बोली “वेलकम बेक”।
अर्णव लोगों के भीड़ के सामने नैना से फिर से माफ़ी माँगने की कोशिश की तो नैना ने उसके होठों पर हाँथ रखते हुए बोली “मुझे यकीन था, तुम एक दिन आओगे, तुम आये यही काफी है” और हँसते हुए कहा “यार, प्यार में कभी-कभी ऐसा होता है”।
अर्णव ने आगे बढ़कर नैना को बाँहों में भरा और माथे को चुमते हुए बोला “हाँ, कभी-कभी ऐसा होता है”। फिर तो बिजली की तेज़ करकराहट के साथ पूरी रात बारिश होती रही।



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