छन्न से एक कलम लम्हों से गिरी
बोली -
"प्रकाश की अनगिनत सुइयों से
समन्दर अपने सपने गढ़ता है"
कलम अंजना टंडन जी की ... जो कहती है ,
अकेलेपन को भरने के लिए बहुत से कोने तलाशने होते हैं. .......
एकांत तो भीड़ में भी मिल जाता है. .....
उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते
पहुँच गई थी
उस घाट तक , जहाँ
निर्लिप्तता का एकान्त था,
सरोवर में व्याकुलता नहीं
एक निस्संग तल्लीनता थी, उस पल में अटकी थी सालती सी
एक लुढ़कते आत्मविश्वास की गंध, किनारे पर खड़े बरगद के
शुष्क पत्ते निस्पृहता से
पानी की कगार पर
डूबक डूबक के
अंतिम यात्रा पर थे, दूर दूर तक फैली थी एक
उदास धूप की पीली सुगंध, इसके पहले कि
अवसाद का विलाप
मुझ पर आलम्बित होता, सुनाई दिया
जल की सतह पर
फूटते बुलबुलों का हास्य, ये कैसा एक
हवा का ताजा झोंका, शायद
जीवन था कहीं तली में,
बस ज़रूरत थी
फेफड़े भर के
एक
गहरी डुबकी की, इस छोर पर मैं
मंथर ही सही
पर गतिमान हो
निगल लेती हूँ
वो अटकते
हलक के काँटें, उलटी कलाई से आँखें पौंछ
समुन्दर के वक्षस्थल को
सौंप देती हूँ
अपनी कृशकाया सी नाव , कितना कुछ पाना है
कितना कुछ मिलता है
एक और कोलम्बस जन्मता है, दूर तक फैली थी
आमंत्रित करती
गुनगुनाती धूप,
कितना आसान था वो सफर....!!!
बहुत ही गहरी सोच से उपजी रचना ... मन के तार झंझोड़ जाती है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंवाह....। बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंवाह....। बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंवाह गहन
जवाब देंहटाएंवाह गहन
जवाब देंहटाएंThanks for sharing this valuable information.I have a blog about computer and internet
जवाब देंहटाएंhow to create email subscription form
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