डॉ रवि शर्मा
'कुछ तो तेरे प्यार के मौसम ही मुझे रास कम आए, और कुछ मेरी मिट्टी में बगावत भी बहुत थी'. बस यही है मेरी फितरत. कुछ ही लोग मेरे दिल और दिमाग तक पहुँच पाते हैं. वैसे तो किसी शायर ने कहा है कि 'परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं रहता', लेकिन मेरी आदत है छोटी छोटी बातें पकड़ना और उनका विश्लेषण करते रहना. और बगावती मिट्टी से पैदा हुई सोच का ही नतीजा है कि डाक्टरी की प्रेक्टिस छोड़कर पत्रकार बन गया...!!! रास तो खैर यह भी नहीं आ रहा.
मैं महानगर बनता जा रहा हूँ
और इसका अहसास भी
हुआ मुझे उसी रोज़
जब मैंने पाया
खुद को
हर दिशा से आई परेशानियों से घिरे हुए जो
मुझमे घर बनाने को आतुर थी।
तब मैंने जाना
इन परेशानियों के चेहरे
जाने पहचाने तो हैं
परिचित नहीं।
तभी मुझे लगा
मैं महानगर बनता जा रहा हूँ।
फ़िर उस रोज़
मेरे दिमाग के बीचोंबीच
एक चौराहे पर विचारों का
ट्रेफिक जाम हो गया।
पीछे कहीं फंस गयी यादों की चिल्लपों
के बाद मैं थम गया, लाल बत्ती सा।
तब मुझे लगा मैं महानगर बनता जा रहा हूँ।
और अभी कल ही तो
मेरे सीने से होकर गुजर रही
एक याद
वक्त की ताव न सहकर
गिर पड़ी
गश खाकर।
लोगों का हुजूम उसके चेहरे पर झुका,
मर गयी!
"अरे आगे बढो, देर हो रही है"
किसी विचार ने कहा।
और तभी मुझे लगा मैं महानगर बनता जा रहा हूँ।
तब मुझे लगा मैं महानगर बनता जा रहा हूँ। mens wedding rings wholesale uk , bar necklace canada ,
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